परिग्रहो हि दु:खाय यद् यत्प्रियतमं नृणाम् ।
अनन्तं सुखमाप्नोति तद् विद्वान् यस्त्वकिञ्चन: ॥ १ ॥
अवधूत दत्तात्रेय जी ने कहा--
राजन! मनुष्य को जो वस्तुएं अत्यंत प्रिय लगती है, उन्हें इकट्ठा करना ही उनके दुख का कारण है। जो बुद्धिमान पुरुष यह बात समझ कर अकिंचन भाव से रहता है-- शरीर की तो बात ही अलग, मन से भी किसी वस्तु का संग्रह नहीं करता-- उसे अनंत सुख स्वरूप परमात्मा की प्राप्ति होती है।11/9/1
एक कुरर पक्षी अपनी चोंच में मांस का टुकड़ा लिए हुए था।
उस समय दूसरे बलवान पक्षी, जिनके पास मांस नहीं था, उससे छीनने के लिए उसे घेरकर चोचे मारने लगे।
जब कुरर पक्षी ने अपनी चोच से मांस का टुकड़ा फेंक दिया, तभी उसे सुख मिला।11/9/2
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