श्री भगवान ने कहा -प्रिय उद्धव! अब मैं तुम्हें अपने उन मंगलमय भागवत धर्मों का उपदेश करता हूं,जिनका श्रद्धापूर्वक आचरण करके मनुष्य संसार रूप दुर्जय मृत्युको अनायास ही जीत लेता है।8. उद्धव जी! मेरे भक्तोंको चाहिए कि अपने सारे कर्म मेरे लिए ही करें और धीरे-धीरे उनको करते समय मेरे स्मरण का अभ्यास बढाये। कुछ ही दिनों में उसके मन और चित् मुझमें समर्पित हो जाएंगे।उसके मन और आत्मा मेरे ही धर्मों में रम जाएंगे।9. मेरे भक्त साधुजन जिन पवित्र स्थानों में निवास करते हो, उन्ही में रहे और देवता असुर अथवा मनुष्य में जो मेरे अनन्य भक्त हो, उनके आचरणों का अनुसरण करें।10. पर्व के अवसरों पर सबके साथ मिलकर अथवा अकेला ही नृत्य, गान, वाद्यआदि महाराजोचित ठाट -बाटसे मेरी यात्रा आदि के महोत्सव करें।11. शुद्ध अंतःकरण पुरुष आकाश के समान बाहर और भीतर परिपूर्ण एवम आवरण शून्य मुझ परमात्मा को ही समस्त प्राणियों और अपने हृदय में स्थित देखें।12. निर्मल बुद्धि उद्धव जी! जो साधक केवल इस ज्ञान दृष्टि का आश्रय लेकर संपूर्ण प्राणियों और पदार्थों में मेरा दर्शन करता है और उन्हें मेरा ही रूप मानकर सत्कार करता है ...
भक्त जनों के हृदय से कभी दूर ना होने वाले अच्युतभगवान के चरणों की नित्य-निरंतर उपासना ही इस संसार में परम कल्याण--आत्यंतिक क्षेम है और सर्वथा भयशून्य है, ऐसा मेरा निश्चित मत है। देह, गेह आदि तुच्छ एवं असत पदार्थों में अहंता एवं ममता हो जाने के कारण जिन लोगों की चित्तवृत्ति उद्विग्न हो रही है, उनका भय भी इस उपासना का अनुष्ठान करने पर पूर्णतया निवृत हो जाता है। 33 भगवान ने भोले-भाले अज्ञानी पुरुषों को भी सुगमता से साक्षात अपनी प्राप्ति के लिए जो उपाय स्वयं श्री मुख से बतलाए हैं, उन्हें ही *भागवत धर्म* समझो। 34 इन भागवत धर्मों का अवलंबन करके मनुष्य कभी विघ्नों से पीड़ित नहीं होता और नेत्र बंद करके दौड़ने पर भी अर्थात विधि-विधान में त्रुटि हो जाने पर भी न तो मार्ग से स्खलित ही होता है और न तो पतित-- फल से वंचित ही होता है।35. (भागवत धर्म का पालन करने वाले के लिए यह नियम नहीं है कि वह एक विशेष प्रकार का कर्म ही करें।)वह शरीर, से वाणी से, मनसे, इंद्रियों से, बुद्धि से, अहंकार से, अनेक जन्मों अथवा एक जन्म की आदतों से स्वभाव-वश जो-जो करें, वह सब परम पुरुष भगवान नारायण के...